छत्तीसगढ़

खुरहा -चपका रोग से बचाने गौवंशीय एवं भैंसवंशीय पशुओं का टीकाकरण शुरू

बलौदाबाजार, 16 सितम्बर 2024/sns/- पशुधन विकास विभाग द्वारा जिले के गौ वंशीय एवं भैंसवंशीय पशुओं को खुरहा चपका बीमारी के संक्रमण से बचाने के लिए सघन टीकाकरण अभियान 15 अगस्त 2024 से शुरू किया गया है जो 30 सितम्बर 2024 तक चलेगा। जिले के पशुधन विकास विभाग के समस्त विकासखंडो में कुल 48 टीकाकरण दलों का गठन किया गया है जिनके द्वारा गांव में घर -घर जाकर शत प्रतिशत टीकाकरण पूरा किया जाएगा। जिले को 4लाख 83 हजार 635 पशुओं का टीकाकरण  का लक्ष्य प्राप्त हुआ है।

उप संचालक पशु चिकित्सा डॉ नरेन्द्र सिंह ने बताया कि टीकाकरण से पूर्व जिले के समस्त पशु औषधालयों में पर्याप्त मात्रा में टीकाद्रव्य उपलब्ध कराया गया हैं साथ ही उक्त टीकाद्रव्य को कोल्ड चैन मेंटेनेंस के निर्देश दिए गए हैं।उन्होंने बताया कि खुरहा -चपका रोग विभक्त खुर वाले पशुओ का अत्यंत संक्रामक एवं घातक विषाणु जनित रोग है जो गाय,बैल, भैंस, भेड, बकरी, सूअर आदि पशुओं को होता है। इस रोग के आने पर पशुओं को तेज बुखार हो जाता है। पशुओं के मुंह, मसूड़े, जीभ के ऊपर नीचे होंठ के अंदर का भाग एवं खुरों के बीच के जगह पर छोटे छोटे दाने से उभर आते हैं फिर धीरे धीरे ए दाने आपस में मिलकर बड़ा छाला बनाते हैं। समय पाकर यह छाले पक जाते हैं और उनमें जख्म हो जाते हैं।  खुरहा–चपका  रोग के नियंत्रण हेतु सभी पशुओं में टीकाकरण कराना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने समस्त पशुपालकों से  टीकाकरण दल के साथ सहयोग कर अपने पशुओं में शत प्रतिशत टीका लगवाकर शासन के मुहिम को सफल बनाने का अनुरोध किया है।

 रोग के मुख्य लक्षण – प्रभावित होने वाले पैर को पटकना, पैरों (खुर के आस – पास ) सूजन, लंगड़ाना, तेज बुखार, खुर में घाव एवं घावों में कीड़ा हो जाना, कभी-कभी खुर का पैर से अलग हो जाना, मुंह से चिपचिपा लार गिरना, दुग्ध उत्पादन क्षमता में कमी आना । रोग से ग्रसित मवेशी अत्यंत कमजोर हो जाने के कारण कृषि कार्य में इस्तेमाल के लायक नहीं रह जाते एवं दुधारू मवेशियों में दुग्ध उत्पादन क्षमता प्रभावित होता है तथा गाय व भैंस में गर्भपात भी हो सकता है।

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