छत्तीसगढ़

दिव्यांग सुश्री ठगन ने हौसले और जीवटता से बदली अपनी तकदीर

राजनांदगांव / दिसम्बर 2021। दुनिया में ऐसे कई दिव्यांग हैं, जिन्होंने अपनी कमजोरी को ही अपनी ताकत बनाया है। इन्होंने कभी हौसला नहीं खोया और सफलता के मुकाम पर पहुँचकर औरों के लिए आदर्श प्रस्तुत किया है। दिव्यांगता को कभी जीवन में बाधक बनने नहीं दिया और संघर्ष कर अपनी तकदीर को बदला है। राजनांदगांव जिले के छुईखदान विकासखण्ड की मुंडाटोला ग्राम पंचायत की दिव्यांग महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) मेट सुश्री ठगन मरकाम हौसले की बानगी हैं। परिवार में माता-पिता के गुजरने के बाद गाँव के बड़े-बुर्जुगों को ही अपना अभिभावक मानकर मनरेगा के जरिये गाँव के लिए कुछ कर गुजरने का हौसला रखने वाली वह आज सबकी विशेषकर महिलाओं की आदर्श बन गई है। प्रख्यात शायर राहत इंदौरी की यह नज्म उनके लिए प्रासंगिक लगती है –
कभी महक की तरह हम गुलों से उड़ते हैं, कभी धुंए की तरह पर्वतों से उड़ते हैं,
           ये कैंचियां हमें उडऩे से खाक रोकेंगी, के हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं।

35 वर्षीया सुश्री ठगन एक पैर से दिव्यांग हैं और जनवरी 2021 से गाँव में महिला मेट की भूमिका का सफलतापूर्वक निर्वहन कर रही हैं। मेट बनने के बाद उन्होंने गाँव में नया तालाब निर्माण, श्री विनय धुर्वे के खेत में भूमि सुधार कार्य एवं श्री श्यामलाल के खेत में कूप निर्माण का कार्य करवाया है। उनकी सक्रियता से योजनांतर्गत खुले कामों में महिला श्रमिकों की भागीदारी बढ़कर 50 प्रतिशत पर पहुँच गई है। महात्मा गांधी नरेगा में वर्ष 2019-20 में जहाँ महिलाओं के द्वारा सृजित मानव दिवस रोजगार का प्रतिशत 42.36 था, वह वर्ष 2020-21 में बढ़कर 50.86 प्रतिशत हो गया। गाँव में महिलाओं के बीच अपने सरल व्यवहार को लेकर लोकप्रिय सुश्री ठगन ने अपनी लगनशीलता के बलबते चालू वित्तीय वर्ष में भी महिलाओं की भागीदारी को 50 प्रतिशत बनाकर रखा है। नवम्बर 2021 की समाप्ति तक गाँव में कुल रोजगार प्राप्त 615 श्रमिकों में से 310 महिला श्रमिकों को 6802 मानव दिवस का रोजगार मिल चुका है।
मनरेगा मेट सुश्री ठगन का अतीत संघर्षों से भरा रहा है। मनरेगा मजदूर से मनरेगा मेट बनने का सफर उनके लिए आसान नहीं था। माता-पिता के स्वर्गवास होने और बहनों के विवाह उपरांत वह परिवार में अकेली हो गई थी। एक पैर से दिव्यांग होने के कारण पंचायत से उन्हें उनकी क्षमता के अनुसार काम मिलता था। अपने संघर्षों के बारे में ठगन मरकाम कहती हैं कि उनके पास लगभग डेढ़ एकड़ की पुश्तैनी कृषि भूमि है, जिसे वे अधिया में देकर कृषि कार्य कराती हैं। जीवनयापन के सीमित साधनों के कारण उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। ऐसे में ग्राम रोजगार सहायक सुश्री सरिता धुर्वे उनके लिए एक मददगार के रूप में आगे आई और उन्हें महात्मा गांधी नरेगा में महिला मेट के रूप में काम करने की सलाह दी। यह उनकी सलाह का ही परिणाम है कि वे गांव में आज मनरेगा मेट के रूप में सम्मानपूर्वक अपने दायित्वों का निर्वहन कर पा रही हैं। मनरेगा से मिले पारिश्रमिक से उन्होंने अपने लिए एक सिलाई मशीन खरीद ली है, जिसका उपयोग वे अपनी आजीविका के लिए कर रही हैं।

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