छत्तीसगढ़

अलग ही है भूपेश बघेल की भेंट-मुलाकात,न बड़े-बड़े डोम, न भाषण, न तामझाम, न धूल की गुबार

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल 03 जून से फिर भेंट-मुलाकात पर निकलने वाले हैं। यूं तो भेंट-मुलाकात एक साधारण सा शब्द है, लेकिन तब भी यह आम मेल-मुलाकात से काफी अलग है। छत्तीसगढ़ की परंपरा में जब भी किसी से भेंट होती है तो वह गले मिले बिना या हाथ मिलाए बिना पूरी नहीं होती। और भेंट-मुलाकात की इस प्रक्रिया में हौले से भावनाओं का लेन-देन भी हो जाता है।

भूपेश बघेल अपने कार्यकाल के साढ़े 3 वर्ष पूरे हो जाने के बाद भेंट-मुलाकात पर निकले हैं। उन्हीं के अनुसार, वे अपनी योजनाओं का जमीनी फीड-बैक ले रहे हैं। इसके लिए उन्होंने विधानसभा क्षेत्रों को यूनिट के रूप में चुना है और 90 विधानसभा क्षेत्रों का दौरा करने वाले हैं। 04 मई से शुरु हुए उनके इस कार्यक्रम में वे अब तक सरगुजा संभाग के 07 और बस्तर संभाग के 09 विधानसभा क्षेत्रों का दौरा कर चुके हैं।

किसी मुख्यमंत्री का अपने राज्य के दौरे पर निकलना देश के लिए कोई नयी बात नहीं है। आम लोगों से मुलाकात करना भी आम है। छत्तीसगढ़ के ही पिछली सरकार के कार्यकाल में तब के मुख्यमंत्री की कई यात्राएं देखीं हैं, जिनसे उठी गुबारों से मटमैली हुई हवाएं अब तक छंटी नहीं है। राजमार्गों और राज्य मार्गों पर शाही वाहनों की कई-कई किलोमीटर लंबी रेलम-पेल लोगों को अब तक याद है। छोटे-छोटे गांवों और कस्बों के खेतों को रौंदकर गड़ाए गए बड़े-बड़े डोम, बड़े-बड़े बैरिकेट्स, मंच पर झूलते गुब्बारे, फ्लैक्स, बिछी हुई कालीनें, सैकड़ों कुर्सियां, हाफतें-दौड़ते पुलिस कर्मी, पसीने से लथपथ अफसर, विज्ञापनों से अटे पड़े अखबार, होर्डिंगों से अटी पड़ी सड़कें, पांपलेट, ब्रोशर, किताबें, बड़ी-बड़ी एलईडी पर हाथ हिलाते तत्कालीन विकास-पुरुष, ये सारे दृश्य उसी यात्रा का हिस्सा हुआ करते थे। लेकिन इस बार ये सारी धमा-चौकड़ी गायब है।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अब तक की यात्रा में न तो कहीं पर पंजा छाप है, न पंजा छाप की बात है, न कांग्रेस है, न कांग्रेसी हैं। नेताओं के लंबे-लंबे भाषण भी नहीं है, इसलिए पांपलेटों और ब्रोशरों से पंखा झलकर पसीना सूखाते और जंभाई लेते लोग भी नहीं हैं। भूपेश बघेल ने योजनाओं का फीड-बैक लेने का जो तरीका अपनाया है उसमें संवाद और स्वतः निरीक्षण पर वे जोर दे रहे हैं। वे हर विधानसभा क्षेत्र के कम से कम चार जगहों का दौरा कर रहे हैं, जिनमें से एक जगह शहरी अथवा कस्बाई होती है, जहां वे रात्रि विश्राम भी करते हैं। सुबह की शुरुआत सरकारी अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक के साथ होती है, जिसमें वे क्षेत्र के विकास कार्यों की प्रगति की समीक्षा करते हैं, आगे क्या करना है इस बारे में निर्देशित करते हैं। इसके ठीक बाद में क्षेत्रीय पत्रकार वार्ता होती है, इसमें वे अपनी यात्रा का ब्यौरा देने के साथ-साथ पत्रकारों के सवालों का जवाब भी देते हैं, और फिर वे तय-शुदा गांव-देहात की ओर निकल जाते हैं, भेंट-मुलाकात के लिए।
यूं तो भूपेश बघेल कह चुके हैं कि वे कहीं भी औचक निरीक्षण नहीं कर रहे हैं, लेकिन तब भी किसी गांव में उनका जाना इतना भी पहले निश्चित नहीं हो जाता कि स्थानीय प्रशासन को गैर-जरूरी तैयारियों का अवसर मिल पाए। मुख्यमंत्री की सभा गांव के किसी खेत, खलिहान, अमराई में बुलाई जा सकती है, जहां हजार-पांच सौ लोग आराम से बैठ सकें। मंच के लिए थोड़ी ऊंचाई पर रखी खाट भी पर्याप्त हो जाती है। अधिक से अधिक पत्तों, डंगालियों से ढंका छोटा-मोटा कोई मंच। एक साधारण सा माइक, और साधारण सा साउंड सिस्टम, ताकि लोग जो कहें वह मुख्यमंत्री तक ठीक-ठीक पहुंच सके, मुख्यमंत्री जो कहें, वह भी लोगों तक पहुंच जाए। एक माइक उस छोटी सी भीड़ में यहां-वहां घूमता रहता है, और दूसरा माइक थामे भूपेश बघेल भीड़ से संवाद कर रहे होते हैं। यदि किसी ने कोई समस्या बताई, और संभव हुआ तो समाधान भी वहीं पर हो जाता है। उनके द्वारा ग्राम पंचायतों, तहसील कार्यालयों, अस्पतालों, स्कूलों, आंगनवाड़ी केंद्रों, पुलिस थानों का किया जाने वाला निरीक्षण भी इसी तरह बिना तामझाम वाला होता है, लेकिन होता बारीक है। लापरवाही पकड़ी गई तो कार्रवाही भी वहीं से शुरु हो जाती है। अच्छे कामों की शाबासी भी तुरंत मिल जाती है।

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