छत्तीसगढ़

मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान से पुष्पराज हुआ कुपोषण से मुक्त

बेमेतरा, जनू 2022

यह कहानी बेमेतरा जिला अन्तर्गत परियोजना नांदघाट सेक्टर कुंरा के ग्राम अमोरा निवासी पुष्पराज पिता उत्तम एवं माता अश्वनी की है। महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा आयोजित वजन त्यौहार कार्यक्रम अन्तर्गत ग्राम में निवास कर रहे सभी बच्चों का वजन, ऊंचाई एवं लंबाई का मापन किया जाता है एवं उम्र के अनुसार, वजन के अनुसार कुपोषण की गणना की जाती है। इसकी गणना हेतु साल्टर मशीन, इलेक्ट्रनिक मशीन, इंनफेन्टोमीटर मापक यंत्र का प्रयोग करते हुए कुपोषण की पहचान की जाती है।
इस तरह चिन्हांकित गंभीर एवं मध्यम कुपोषित बच्चों को कलेक्टर श्री विलास भोसकर संदीपान के द्वारा ऐसे बच्चों को अतिरिक्त पौष्टिक आहार केला, चना, गुड़ का लाभ समूह के माध्यम से देना 14 नवम्बर 2021 से सुनिश्चित किया गया। इसी अभियान अन्तर्गत विकासखण्ड नवागढ़ के सेक्टर कुंरा के 257 बच्चों में 223 मध्यम एवं 34 गंभी कुपोषित थे। सुपोषण अभियान के तहत सभी बच्चों को सप्ताह में तीन दिन केला एवं तीन दिन चना गुड़ दिया गया। लगातार 6 महीने पूरे होने के बाद कुछ परिवर्तन बच्चों के स्वास्थ्य एवं वजन में देखा गया जिसके परिणाम स्वरुप माह मई में सेक्टर के 233 मध्यम कुपोषित में से 125 सामान्य श्रेणी एवं 34 गंभीर कुपोषित बच्चों में से 10 मध्यम एवं 2 बच्चे सामान्य ग्रेड में आये। समान्यतः देखा जाता है कि बच्चा मध्यम श्रेणी से सामान्य श्रेणी में थोड़ा प्रयास से स्वस्थ हो जाता है। परंतु गंभीर श्रेणी वाले बच्चों को सामान्य ग्रेड में लाना बहुत की कठिन हो जाता है। आज इसी तरह एक मिशाल बनकर पुष्पराज हमारे सामने आया है। पुष्पराज सामान्य परिवार से हैं इनके माता पिता मजदूरी करते हैं। पुष्पराज ज्यादातर अपने घर में अकेला ही रहता था। दादा-दादी कभी कभी देखरेख करते थे। मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान योजना के तहत  पुष्पराज का अतिरिक्त ध्यान सेक्टर की आंबा कार्यकर्ता श्रीमती विमला धु्रव एवं लक्ष्मी स्व-सहायता समूह की महिलाओं द्वारा रखा जाता था। पर्यवेक्षक कुंरा के द्वारा भी पुष्पराज के खान पान, एकीकरण इत्यादि का अनुश्रवण नियमित रुप से किया जाता था, पुष्पराज को अपने समक्ष ही चना, गुड़ एवं केला खिलाया जाता था। बार-बार हाथ को धोने की सलाह परिवार एवं महिला समूहों को दिया जाता रहा है। एक अच्छी आदतों का विकास करवाया गया। पुष्पराज की माता का कहना था कि वह खाना नहीं खाता था। बार-बार बीमार हो जाता था। लेकिन 6 माह की अवधि में पूरी टीम द्वारा सतत् निगरानी कर पुष्पराज को सुपोषित किया। प्रतिमाह उसका वजन लेते हुए उनकी माता को सुपोषण चक्र समझाया जाता था। स्व-सहायता समूह की महिलाओं को भी यह एक नया अनुभव मिला कि किस तरह जीवन चक्र सुपोषित एवं कुपोषित होता है। लक्ष्मी स्वसहायता समूह की सभी सदस्यों को इस बात की खुशी थी की हमारे प्रयास एवं विभाग की सतत् मार्गदर्शन में हमने कुपोषण के खिलाफ एक जंग जीती है। कुपोषण की इस जंग में आज यह साबित हुआ कि कुछ भी असंभव नहीं है बस दृढ़ संकल्प एवं ईमानदारी से किया गया प्रयास होना चाहिए।

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