रायगढ़, जुलाई 2022
रायगढ़ जिले से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर धरमजयगढ़ विकासखंड के ग्राम पंचायत दर्रीडीह के अंतर्गत आने वाला आदिवासी बाहुल्य वनांचल ग्राम खालबोरा कुछ समय तक इसकी पहचान केवल एक सुदूर आदिवासी ग्राम से ज्यादा नहीं थी, लेकिन आज यहां शासन की विभिन्न योजनाओं का संयुक्त संचालन के माध्यम से यहां संवर्धन की दिशा में कार्य किया जा रहा है। जिससे लोगों को अतिरिक्त आय का जरिया मिला है और उनके जीवन स्तर में सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहा है।
ग्राम में परंपरागत पशुपालन से दूर होते लोगों को केवल अतिरिक्त आय के रूप में मजदूरी ही मिल पाती थी। लेकिन आज इस गांव की तस्वीर कुछ और देखने को ही मिल रही है। पशुपालन विभाग द्वारा गौ पालन के लिए शेड निर्माण कर तकरीबन 7 ग्रामीणों को दूध उत्पादन के लिए उन्नत नस्ल की गाय प्रदाय की गई है। जिससे ग्रामीण दूध उत्पादन कर आज खुले बाजार के साथ ग्रामीण स्तर में भी दूध ब्रिकी कर अच्छी आय प्राप्त कर रहे है। पहले सिर्फ गोबर ब्रिकी कर रहे थे, लेकिन आज उन्नत नस्ल के गाय के मिलने से गांव में दूध उत्पादन और आय संवर्धन की दिशा में अनुकूल असर दिखाई दे रहा है। जिसे देखकर गांव के अन्य ग्रामीण भी पशुपालन के लिए प्रोत्साहित हो रहे है।
गांव के बलदेव अगरिया कहते है कि पहले मजदूरी ही अतिरिक्त आय का मुख्य जरिया था। लेकिन आज शासन की योजना के माध्यम से गाय मिला है। जिसे 8 से 10 लीटर दूध रोजाना प्राप्त होता है। जिसे स्वयं के उपयोग के साथ ही स्थानीय स्तर पर ब्रिकी कर रहे है। जिससे माह में लगभग 8-9 हजार मासिक आमदनी प्राप्त हो रही है। मासिक आय बढऩे से कृषि कार्य में भी आसानी हुई है।
सविता यादव बताती है कि पहले अतिरिक्त आय के रूप में कृषि कार्य आधारित मजदूरी होती थी। आज उन्नत नस्ल की गाय मिलने से 10-12 लीटर दूध प्राप्त हो रही है, जिसे धरमजयगढ़ में बेचते है। जिससे रोजाना 400 रुपए की आमदनी हो रही है। साथ ही घी एवं दही से भी अतिरिक्त आय प्राप्त हो रही है। उन्होंने कहा कि पहले सप्ताह में कोई काम मिल जाने से थोड़ी-बहुत आमदनी होती थी लेकिन आज दूध बिक्री के माध्यम से प्रतिदिन एक निश्चित आमदनी प्राप्त हो रही है, जिससे घर चलाने और बच्चों की मांग पूरी करने में आसानी हो रही है।
मंगलू यादव, रामबाई, बृजलाल, नैहरो एवं शंकर का कहना है कि प्रशासन द्वारा उन्हें गाय मिलने से उनकी आय में वृद्धि हुई है। उनके द्वारा दूध से घी, दही, पनीर जैसे खाद सामग्री बनाया जा रहा है। जिससे लाभ होने से उनके जीवन स्तर में सुधार हुआ है। आज उन्हें अतिरिक्त आय के लिए अन्य दैनिक मजदूरी जैसे कार्यों पर निर्भरता कम हुई है। जिन्हे देख गांव के अन्य ग्रामीण भी पशुपालन के लिए प्रोत्साहित हो रहे है।