जगदलपुर, अक्टूबर 2022/ राज्य के कुछ जिलों में धान की खेतों में एक अदृश्य मकड़ी ने हमला बोल दिया है, जिसका वैज्ञानिक नाम स्टेनोटासनेमस स्पिंकी है यह एक ऐसा माईट ध् मकड़ी है जो पोषक तत्वों को चूस कर धान में बालियां बनने नहीं देता है यह शुष्क भूमि में तेजी से फैलता है। यह धान की फसल पर उस समय हमला करता है, जब फसल 60 से 70 दिन की बाली आने की अवस्था होती है। यह मकड़ी अदृश्य मकड़ी है, जो सामान्य आखों से नहीं दिखाई देता, यह मकड़ी एक से दो वर्ष तक जीवित रहता है और पैरा या खाद के जरिए खेतों में पहुंचता है, ऐसे में आवश्यक है कि सही समय पर इस मकड़ी की पहचान की जाकर नियंत्रण किया जावे।
पेनिकल माइट गभोट अवस्था में धान के दानों को नुकसान करती है और रस चूसती है। नुकसान वाले स्थान पर फफूंद का आक्रमण होने से बालियाँ बदरंग हो जाती है। जिससे दूध भराव नहीं होता और चावल बनने की प्रक्रिया पूरी नहीं होती है। जिससे धान की पत्तीयों पर भुरे धब्बे दाने अनियमित आकार के दूध भराव रहित होकर बदरा रह जाय तो समझिये कि धान की फसल पर पेनिकल माईट अदृश्य मकड़ी का प्रकोप है ऐसी स्थिति में इससे बचाव के लिये पौध संरक्षण दवाई का उपयोग करें कृषि वैज्ञानिको द्वारा सुझाये अनुसार डाइफेन्युरोन 50ः एस.पी. मात्रा 120 ग्राम प्रति एकड़, प्रोपिकोनाजोल 25ः ई.सी. 200 मि.ली. प्रति एकड़, स्पाइरोमेसिफेन 22.9 एस.सी. का 200 मि.ली. या प्रोफेनोफॉस 50ः ई.सी. का 400 मि.ली.ध्एकड़, हेक्जीथायोजॉक्स 120 से 150 मि.ली. प्रति एकड़ अथवा इटाक्साजोल 120 से 150 मि.ली. प्रति एकड़ की दर से दवा का छिड़काव किया जा सकता है।
यह मकड़ी 70-80 आर्द्रता और 20 से 35 डिग्री तापमान पर अनुकूल रूप से बढ़ते है। बहुत से क्षेत्रों में जहां किसान धान की दो फसलें लेते है, अगर पेनिकल माइट प्रकोप से बचना है तो धान के बाद सब्जी या अन्य फसल ले मकड़ी फसल कटने के बाद ठूठ में भी जमीन में जिंदा रहता है। एक खेतों में कृषि उपकरणों के उपयोग के पश्चात् दूसरे खेत में कृषि उपकरणों का उपयोग करने के पूर्व अच्छी तरह से सफाई कर ले, फसलो में संतुलित उर्वरकों का उपयोग विशेष कर नत्रजन युक्त उर्वरकों का प्रयोग, सही बीज दर और पौधे से पौधे की दूरी उचित रखकर, फसल चक विशेष कर दलहन, तिलहन का समावेश कर, संवेदनशील किस्में स्वर्णा, कर्मा मासुरी, डज्न्.1001, महामाया, राजेश्वरी का उपयोग ना करें। जिले के उप संचालक कृषि श्री श्याम सिंह सेवता द्वारा खरीफ फसलों में कीट व्याधि से संबंधित समस्याओं हेतु जिला स्तरीय नियंत्रण कक्ष बनाया गया है एवं ब्लॉक स्तर पर भी दल का गठन किया गया है। जिला स्तरीय नियंत्रण कक्ष के नोडल कृषि विकास अधिकारी विकासखण्ड बस्तर श्री थलेश कुमार पानीग्राही मो.न. 7987530414 वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी बकावण्ड, श्री आई.एल. पाटकर, मो.न. 7697306449 वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी विकासखण्ड लोहण्डीगुडा, श्री ए.के. बोस 9425596828 वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी विकासखण्ड तोकापाल श्री रामनाथ मौर्य, मो. न. 7000408442 वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी विकासखण्ड दरमा श्री जितेन्द्र शार्दुल, मो. न. 9424297312 वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी विकासखण्ड बास्तानार एवं अपने क्षेत्र के ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारियों से सम्पर्क कर किसान उचित उपचार के लिए मार्गदर्शन ले सकते है।