छत्तीसगढ़

जनजातिय लोक संस्कृति को मिली देश-दुनिया में नई पहचान

स्वतंत्रता दिवस के मौके पर विशेष लेख

रायपुर, 01 अगस्त 2023/थाईलैंड के युवा कलाकार एक्कालक नूनगोन थाई ने राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के आयोजन के लिए छत्तीसगढ़ सरकार की सराहना करते हुए कहा था कि जनजाति समुदाय की अपनी कला, संस्कृति होती है, इसकी पहचान आवश्यक है। जनजाति समुदाय एक कस्बे या इलाकों में निवास करते हैं, ऐसे में उनकी कला, संस्कृति की पहचान एक सीमित क्षेत्र में सिमट कर रह जाती है। जनजाति समाज की कला और संस्कृति के संरक्षण में ऐसे आयोजनों की बड़ी भूमिका है। बेलारूस की सुश्री एलिसा स्टूकोनोवा ने कहा था कि यह उसका सौभाग्य है कि वह छत्तीसगढ़ आई। उसे छत्तीसगढ़ के कलाकारों की प्रस्तुति देखकर अहसास हुआ कि यहां की संस्कृति, जीवन में कितनी विविधताएं हैं।

    छत्तीसगढ़ में मेला, उत्सव व महोत्सव लोक परंपरा का एक अंग हैं। वहीं राज्य की लोक संस्कृति एवं आदिवासी एक-दूसरे के पर्याय हैं। यहां के वन और सदियों से निवासरत आदिवासी राज्य की विशेष पहचान रहे हैं। प्रदेश के लगभग आधे भू-भाग में जंगल है, जहां मेला-महोत्सव के जरिए छत्तीसगढ़ की गौरवशाली आदिम संस्कृति फूलती-फलती रही है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में राज्य सरकार ने राज्य की आदिम संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन के साथ ही इसे विश्व स्तर पर पहचान दिलाने का बीड़ा उठाया और छत्तीसगढ़ में वृहद स्वरूप मंे राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का सफल आयोजन किया गया। राज्य में आयोजित आदिवासी नृत्य महोत्सव महज राष्ट्रीय नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप ले लिया, इससे छत्तीसगढ़ की आदिम लोक संस्कृति को देश-दुनिया में एक नई पहचान मिली है।

छत्तीसगढ़ में निवासरत जनजातियों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत रही है, जो उनके दैनिक जीवन, तीज-त्यौहार, धार्मिक रीति-रिवाज एवं परंपराओं के माध्यम से अभिव्यक्त होती है। बस्तर के जनजातियों की घोटुल प्रथा प्रसिद्ध है। जनजातियों के प्रमुख नृत्य गौर, कर्मा, ककसार, शैला, सरहुल और परब जन-जन में लोकप्रिय हैं। जनजातियों के पारंपरिक गीत-संगीत, नृत्य, वाद्य यंत्र, कला एवं संस्कृति को बीते पांच सालों में सहेजने-संवारने के साथ ही छत्तीसगढ़ सरकार ने विश्व पटल पर लाने का सराहनीय प्रयास किया है। अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का भव्य आयोजन इसी प्रयास की एक कड़ी है।

छत्तीसगढ़ की संस्कृति का दर्शन कराने के साथ ही जीवन की कई चुनौतियों से लड़ने और विषम परिस्थितियों में जीवन यापन करने की प्रेरणा और संदेश देने वाले आदिवासी समाज के नृत्य, संगीत और गीत राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के माध्यम से देशभर के लोगों एवं विदेशी कलाकारों को जुड़ने का अवसर दिया। इस महोत्सव में देशभर के अलग-अलग राज्यों से कलाकार, जनजाति समाज सहित अन्य परिवेश के नृत्यों की रंगारंग प्रस्तुतियां देखने-सुनने को मिली। छत्तीसगढ की प्राचीन और समृद्धशाली लोक संस्कृति व नृत्य ने विशिष्ट छाप छोड़ी । रायपुर के साइंस कालेज मैदान में होने वाले इस समारोह में आदिवासी नृत्य के साथ गीत एवं पारम्परिक वेशभूषाओं में एक से बढ़कर एक वाद्ययंत्रों के कर्णप्रिय धुनों की जुगलबंदी के बीच छत्तीसगढ़ ही नहीं देश के अन्य राज्यों की जनजाति संस्कृति का संगम एवं उनकी जीवंत प्रस्तुति भी देखने को मिली।
वर्ष 2019 में पहली बार हुए इस आयोजन में कलाकारों को मंच देकर छत्तीसगढ़ सरकार ने जनजाति संस्कृति को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की पहल की। इस आयोजन का दर्शकों ने लुफ्त उठाया और कलाकारों ने इस मंच के माध्यम से आदिवासी संस्कृति को प्रसिध्दि दिलाई। आदिवासियों को जब राष्ट्रीय स्तर के आयोजन में पहली बार मंच मिला तो वे स्व-रचित गीत, अनूठे वाद्य यंत्रों की धुन और आकर्षक वेशभूषा, आभूषण में सज धजकर नृत्य कला का प्रदर्शन, प्रस्तुतियों को देखने वाले दर्शक आज भी उन्हें भूल नहीं पाते। विगत 3 साल से आयोजित हो रहें। इस महोत्सव में युगांडा, बेलारूस, मालदीव, श्रीलंका, थाईलैंड, बांग्लादेश सहित एक दर्जन देशों से आए विदेशी कलाकार भी शामिल हुए। इसके अलावा 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लगभग 5000 से अधिक कलाकारों ने भी भाग लिया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *