दीदियों ने लिया आदिवासी उप-योजना के तहत गुलाल बनाने का प्रशिक्षण सुकमा, मार्च 2024/ होली का त्यौहार भाईचारे, आपसी प्रेम और सद्भावना का प्रतीक है। इस दिन लोग एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और होली की शुभकामनाएं देते हैं। रंगों के त्यौहार होली को रासायनिक रंगों से मुक्त बनाने और मानव स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए समूह की दीदियों ने अलग-अलग फूलों और सब्जियों से रंग तैयार कर रही हैं।
रंगों के त्यौहार होली को देखते हुए बाजार में कई प्रकार की रासायनिक युक्त गुलाल सस्ते दामों में उपलब्ध हो जाते है। साथ ही इन गुलाल के उपयोग से स्वास्थ्यगत समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है। रासायनिक मुक्त होली मनाने के उद्देश्य से समूह की दीदीयाँ पालक भाजी, लाल भाजी, टेसू के फूल, गेंदा फूल, हल्दी, चुकंदर से हर्बल गुलाल बना रही है। जिसका विक्रय नगर पालिका और तहसील कार्यालय के सामने स्टॉल लगाकर 250 से 300 रुपये प्रतिकिलो की दर से की जा रही है। अब तक जागृति समूह ने लगभग 64 हजार रुपये और मुस्कान समूह ने लगभग 10 हजार रुपये का हर्बल गुलाल विक्रय कर चुकी है।
बता दें कि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के सहयोग से कृषि विज्ञान केंद्र में आदिवासी उपयोजना के तहत 9 महिला स्व-सहायता समूह को हर्बल गुलाल प्रसंस्करण के लिए प्रशिक्षण दिया गया था, जिनमें जागृति स्व-सहायता समूह और मुस्कान स्व-सहायता समूह की दीदियों ने हर्बल गुलाल बनाने में रुचि दिखाई है। दोनों समूह ने लगभग 15 क्विंटल हर्बल गुलाल तैयार की है। जिसका विक्रय स्थानीय दुकान और बाजार में स्टॉल लगाकर की जा रही है। समूह के दीदियों ने बताया कि होली रंगों का त्यौहार है, इस दिन लोग एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और शुभकामनाएं देते हैं। इन दिनों बाजार में रासायनिक युक्त विभिन्न रंगों के गुलाल उपलब्ध हो जाते हैं, जिनके उपयोग से शरीर में लाल चकते, त्वचा में जलन, सर दर्द, मतली, आंखों का लाल होने के साथ जाना होना, जैसे कई हानिकारक प्रभाव स्वास्थ्य पर पड़ता है। स्वास्थ्य पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभाव से बचने के लिए उन्होंने आमजनों को हर्बल गुलाल का उपयोग करने की अपील की है।