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मृदा उर्वरकता एवं उत्पादकता बढ़ाने में हरी खाद का प्रयोग बहुत ही महत्वपूर्ण-डॉ.के.डी.महंत


रायगढ़, मई 2024/sns/- मृदा वैज्ञानिक डॉ.के.डी.महंत ने समसामयिक विषय में हरीखाद की महत्ता एवं आवश्यकता पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए बताया कि सीमित संसाधनों के समुचित उपयोग हेतु कृषक एक फसली, द्विफसली कार्यक्रम व विभिन्न फसल चक्र अपना रहे जिससे मृदा का लगातार दोहन हो रहा है जिससे उपस्थित पौधों के वृद्धि के लिए आवश्यक पोषक तत्व नष्ट होते जा रहे हैं। इस क्षतिपूर्ति हेतु विभिन्न तरह के उर्वरकों व खादों का उपयोग किया जाता है। उर्वरकों द्वारा मृदा में सिर्फ  आवश्यक पोषक तत्व जैसे नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश, जिक इत्यादि की पूर्ति होती है परन्तु मृदा की संरचना, उसकी जल धारण क्षमता एवं उसमें उपस्थित सूक्ष्मजीवों की रासायनिक क्रियाशीलता बढ़ाने में इनका कोई योगदान नहीं होता।
            वर्तमान समय में खेती में रासायनिक उर्वरकों के असंतुलित प्रयोग एवं सीमित उपलब्धता को देखते हुए अन्य पर्याय भी उपयोग में लाना आवश्यक हो गया है, तभी हम खेती की लागत को कम फसलों की प्रति एकड़ उपज को बढ़ा सकते हैं। साथ  ही मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी अगली पीढ़ी के लिए बरकरार रख सकेंगे। मृदा उर्वरकता एवं उत्पादकता बढ़ाने में हरी खाद का प्रयोग प्राचीन कल से चला आ रहा है बिना सड़े-गले हरे पौधे (दलहनी अथवा अदलहनी अथवा उनके भाग) को जब मृदा की नत्रजन या जीवांश की मात्रा बढ़ाने के लिए खेत में दबाया जाता है तो इस क्रिया को हरीखाद देना कहते हैं। सघन कृषि पद्धति के विकास तथा नगदी फसलों के अंतर्गत क्षेत्रफल बढऩे के कारण हरी खाद के प्रयोग में निश्चित ही कमी आई लेकिन बढ़ते ऊर्जा संकट, उर्वरकों के मूल्यों में वृद्धि तथा गोबर की खाद एवं अन्य कम्पोस्ट जैसे-कार्बिनक स्रोतों की सीमित आपूर्ति से आज हरी खाद का महत्व और बढ़ गया है। रासायनिक उर्वरकों के पर्याय के रूप में हम जैविक खादों जैसे-गोबर की खाद, कम्पोस्ट हरी खाद आदि को उपयोग कर सकते हैं। इनमें हरी खाद सबसे सरल व अच्छा प्रयोग है। इसमें पशु धन में आई कमी के कारण गोबर की उपलब्धता पर भी हमें निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं है। अत: हमे हरी खाद के यथासंभव उपयोग पर गंभीरता से विचार कर क्रियान्वयन करना चाहिए।
             डॉ.महंत ने बताया कि हरीखाद के प्रयोग से केवल नत्रजन व कार्बनिक पदार्थों का ही साधन नहीं है बल्कि इससे मिट्टी में कई पोषक तत्व भी उपलब्ध होते हैं एक अध्ययन के अनुसार एक टन ढैंचा के शुष्क पदार्थ द्वारा मृदा में जुटाए जाने वाले पोषक तत्व इस प्रकार है। नत्रजन 26.2 कि.ग्रा., फॉस्फोरस 7.3 कि.ग्रा.,पोटाश 17.8 कि.ग्रा., गंधक 1.9 कि.ग्रा., मैग्नीशियम 1.6 कि.ग्रा., कैल्शियम 1.4 कि.ग्रा.,जस्ता 25 पीपीएम, लोहा 105 पीपीएम एवं ताम्बा 7 पीपीएम हरीखाद के प्रयोग से मृदा भुरभुरी, वायु संचार में अच्छी, जल धारण क्षमता में वृद्धि, अम्लीयता/क्षारीयता में सुधार एवं मृदा क्षरण भी कम होता है। हरीखाद के प्रयोग से मृदा में सूक्ष्मजीवों की संख्या एवं क्रियाशीलता बढ़ती है तथा मृदा की उर्वरा शक्ति एवं उत्पादन क्षमता भी बढ़ती है। हरीखाद के प्रयोग से मृदा जनित रोगों में भी कमी आती है। यह खरपतवारों की वृद्धि रोकने मने भी सहायक हैं। कृषक इसके प्रयोग से रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कम कर बचत कर सकते हैं तथा टिकाऊ खेती भी कर सकते हैं।

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