सुकमा, 22 अक्टूबर 2024/सुकमा जिला अपनी संस्कृति और परंपरा के लिए पूरे भारत में प्रसिद्ध है। यहां के अधिकतर गांवों में छोटे बड़े तालाब और प्राकृतिक जल स्त्रोत उपलब्ध हैं। इन्हीं संसाधनों की उपयोगिता के तारतम्य में कृषि विज्ञान केन्द्र के मछली पालन के कार्यक्रम सहायक डॉ संजय सिंह राठौर ने विभिन्न गांवों जैसे पुजारीपाल, धोबनपाल, पायिकपारा, मूर्तीडा, निर्गुडीपारा, नयानार आदि के तालाबों का निरीक्षण करने पर पाया कि अधिकतर किसान तालाब में मछली डालने से पूर्व तालाब की तैयारी नहीं करते जिससे पानी की गुणवत्ता में कमी के कारण मछली का समग्र विकास नहीं हो पाता और उनकी वृद्धि रुक जाती है। जिले के किसानों का कहना है कि उनके पास संसाधन तो है पर सही मार्गदर्शन देने वाले की कमी है।
डॉ राठौर ने सीमित समय में ही किसानों को प्रशिक्षण से लेकर व्यक्तिगत रूप से मुलाकात कर जमीनी स्तर पर तालाबों को देखा, समस्यायों को जाना और किसानों को प्राकृतिक, सस्ते एवं आस पास उपलब्ध सामग्री के उपयोग द्वारा पानी और मछली की आवश्यकता को पूरा किया जिससे किसानों को तालाब के पानी की गुणवत्ता में सुधार और मछली की बढ़वार देखने को मिल रहा है। इससे जिले के किसान बहुत प्रसन्न है और अन्य किसान लगातार प्रोत्साहित होकर कृषि विज्ञान केन्द्र सुकमा द्वारा बनाए गए मछली पालन केवीके सुकमा ग्रुप में जुड़कर अपनी समस्यायों का समाधान कर पा रहे हैं। उनकी इस भागीदारी से आने वाले समय में सुकमा की मछली पालन के क्षेत्र में एक अमिट छवि बनती दिख रही है। जिले के किसान बटेर पालन के लिए भी अच्छा रुझान दिखा रहे हैं, जिससे उनकी आजीविका उपार्जन में वृद्धि हो रही है। केवीके मूर्तीडा में बटेर पूरी तरह परिपक्व हो गए हैं एवं क्रय हेतु उपलब्ध हैं।