छत्तीसगढ़

हरे, लाल एवं पीले रंग के शिमला मिर्च की खेती से संवर रही किसानों की जिंदगी

  • दुर्लभ किस्म के रंगीन शिमला मिर्च की खेती जिले में अपने तरह का पहला नवाचार
  • राष्ट्रीय बागवानी मिशन अंतर्गत किसान मोरध्वज एवं देवेन्द्र को मिली कुल 33 लाख 76 हजार रूपए की सहायता अनुदान राशि
  • किसानों ने प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री को मदद के लिए दिया धन्यवाद
  • पोषक तत्वों से भरपूर शिमला मिर्च की मार्केट में बहुत डिमांड
  • व्यंजनों में रंगीन शिमला मिर्च का बहुतायत प्रयोग
  • जिले के किसान उत्पादक संगठन की ऊर्जा को मिली प्रेरणा और दिशा
    राजनांदगांव नवम्बर 2024/sns/ अभी तक आपने हरे रंग की शिमला मिर्च का जायका लिया है और जिक्र सुना है, लेकिन अब आप लाल एवं पीले रंग के शिमला मिर्च का भी स्वाद ले सकेंगे। डोंगरगढ़ के ग्राम पेंड्री के प्रगतिशील किसान श्री मोरध्वज सिन्हा एवं राजनांदगांव जिले के ग्राम रेंगाकठेरा के किसान देवेन्द्र कुमार सिन्हा के पॉली हाऊस में लगे दुर्लभ किस्म के लाल, पीले और हरे रंग के शिमला मिर्च की खेती जिले में अपनी तरह का पहला नवाचार है। उद्यानिकी विभाग की ओर से राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत किसान श्री मोरध्वज को पॉली हाऊस की संरचना के लिए 16 लाख 88 हजार रूपए की राशि मिल है तथा संरक्षित खेती के लिए 2 लाख रूपए की राशि मिलेगी। इसी तरह श्री देवेन्द्र कुमार को पाली हाऊस के लिए कुल 16 लाख 88 हजार रूपए की राशि मिली है तथा संरक्षित खेती के लिए 2 लाख रूपए की राशि मिलेगी। मल्चिंग एवं ड्रिप सिंचाई पद्धति से इसकी खेती की जा रही है तथा पौधों को सहारा देने के लिए धागे लगाए गए हैं। पोषक तत्वों से भरपूर शिमला मिर्च की मार्केट में बहुत डिमांड है।
    किसान श्री मोरध्वज सिन्हा ने बताया कि छत्तीसगढ़ में रंगीन शिमला मिर्च की खेती नहीं होती। पहले बंगलौर से इसकी आपूर्ति की जाती थी, लेकिन अब यहीं खेती होने पर इसकी अच्छी कीमत मिल रही है। यहां का रंगीन शिमला मिर्च रायपुर, दुर्ग, भिलाई, राजनांदगांव जिले में जा रहा है। उन्होंने बताया कि अभी उनको 1 एकड़ में लगे 12 हजार पौधों से लगभग 42 लाख रूपए की आमदनी हो जाएगी। 1 पौधे से 3 किलोग्राम तक शिमला मिर्च का उत्पादन हो रहा है। मार्केट में 100-130 रूपए प्रति किलो शिमला मिर्च की बिक्री हो रही है। उन्होंने बताया कि उनकी यह इच्छा है कि यह क्षेत्र मिनी इजराईल की तरह विकसित हो जाए। शासन की योजना के अंतर्गत लाभान्वित होते हुए यहां के किसान कम स्थान एवं कम लागत में पॉली हाऊस जैसे नवीनतम व उन्नत तकनीक का उपयोग करते हुए अधिक से अधिक फसल लें। यहां ज्यादा से ज्यादा पॉली हाउस बने। उन्होंने बताया कि धान के बदले शिमला मिर्च की खेती में कम पानी की जरूरत होती है। धान की खेती से जहां एक एकड़ में 20 हजार रूपए, वहीं शिमला मिर्च की खेती में 20 लाख रूपए तक आमदनी हो रही है। उन्होंने राष्ट्रीय बागवानी मिशन द्वारा अनुदान मिलने पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी एवं मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि इससे पॉली हाउस बनाने एवं संरक्षित खेती करने के लिए मदद एवं प्रोत्साहन मिला है। उन्होंने बताया कि पॉली हाउस में ही किनारों पर धनिया पत्ती लगाए थे, जिससे 70 हजार रूपए की आय हुई है। किसान देवेन्द्र ने बताया कि रंगीन शिमला मिर्च की खेती का नया अनुभव है। उन्होंने बताया कि शिमला मिर्च की तोड़ाई समय-समय पर की जा रही है। दूसरे जिलों में भी भेज रहे हैं। ऊर्जा एवं सकारात्मकता से भरपूर इन किसानों के चेहरों से खुशी बयां होती है। शिमला मिर्च की कटिंग एवं देखरेख के लिए गांव के स्थानीय स्तर पर लोगों को रोजगार मिल रहा है। उल्लेखनीय है कि रंगीन शिमला मिर्च का पास्ता, पिज्जा, सलाद, स्नैक्स, सूप एवं अन्य व्यंजनों में बहुतायत प्रयोग किया जा रहा है।
    जब ऊर्जा को प्रेरणा और दिशा मिलती है तो जिंदगी बदल जाती है। जिले के किसान उत्पादक संगठन माँ बम्लेश्वरी सेल्फ रिलायंस फार्मर्स ठेकवा से 1153 किसान जुड़े हुए हैं। इन जागरूक किसानों ने धान के बदले अन्य फसलों को भी अपनाना प्रारंभ किया है। जिले के 16 हजार वर्ग मीटर में अभी शिमला मिर्च की खेती की जा रही है। कलेक्टर श्री संजय अग्रवाल के मार्गदर्शन में किसान सामूहिकरण के माध्यम से भी कार्य कर रहे हैं और जिले में किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) को बढ़ावा दिया जा रहा है। जिले के किसानों की फसल विविधीकरण के लिए प्रेरित किया जा रहा है। सहायक संचालक उद्यानिकी श्री राजेश शर्मा ने बताया कि उद्यानिकी फसलों की ओर किसानों का रूझान बढ़ा है। किसानों ने पहली बार इतनी बड़ी मात्रा में फसल ली है। अन्य किसानों द्वारा भी पॉली हाऊस की मांग की जा रही है। उन्होंने कहा कि अगली बार शिमला मिर्च की ग्राफ्टेड फसल ली जाएगी, जो देशी एवं हाईब्रिड फसल का समन्वित प्रकार होगा। यह बैक्टिीरियल बिल्ट होता है, जिससे पौधों में बीमारियों से लडऩे की क्षमता बढ़ जाती है। यह फसल 8 माह तक रहती है तथा इसमें कम पानी की जरूरत होती है।

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