सारंगढ़ बिलाईगढ़ मार्च 2025/sns/ राष्ट्रीय फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम अंतर्गत सामूहिक दवा सेवन 13 मार्च तक किया जाएगा। इसके अंतर्गत 27 से 2 मार्च तक बूथ लगाकर दवा सेवन आंगनवाड़ी स्कूल एवं शैक्षिक संस्थानों में दवा सेवन किया जा रहा है। इसी सिलसिले में सारंगढ़ ब्लॉक के दुर्गापाली में मितानिन द्वारा बूथ लगाकर फाइलेरिया दवा सेवन कराया गया। यह फाइलेरिया की डीईसी दवा 2 साल से कम बच्चों को और गर्भवती माता को नहीं खिलाना है। 2 साल से कम बच्चों को अल्बेनडाजोल की आधी गोली खिलाना है। जिले के शहर और गांव में मितानिन और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों के द्वारा फाइलेरिया से बचाव की जानकारी आमजनों को दी जा रही है। उन्हें समझाया जा रहा है कि फाइलेरिया (हाथी पांव) बीमारी मच्छर के काटने से होता है। मच्छर पनपते कैसे है और बीमारियां फैलाती कैसे है। मच्छर जनित रोगो में मुख्यतः मलेरिया, फाइलेरिया , डेंगू , चिकनगुनिया जीका , जापानिस इंसेफेलाइटिस आदि बीमारियां होती है। यह बीमारी जानलेवा भी हो सकता है। आमतौर पर घर में या घर के आसपास बहुत से ऐसे जगह मिल जाता है, जहां मच्छर अपने अंडे देती है ऐसे स्थानों में पुराने बर्तन के, पुराने टायर, गमले , कूलर में बहुत दिनों तक पानी भरा हुआ रखना, गद्दे, पोखर, बोरिंग के पास या नल के पास पानी का जमा हुआ रहना मच्छर अक्सर ऐसे ही स्थिर पानी की खोज में रहते है। मच्छर के प्रजनन के लिए जमा हुआ पानी या हल्का मंद गति से बहता हुआ पानी ही पसंदीदा जगह होता है। रुका हुआ पानी की सतह में पानी साफ होता है। मच्छर दो प्रकार के होते है एक नर मच्छर और दूसरा मादा। मच्छर मादा मच्छर नर से साइज में कुछ बड़ा होता है और नर की तुलना में मादा ज्यादा दिन तक जीवित रहता है। मादा मच्छर खून पीता है और अपने वजन से तिगुना वजन तक खून को पीता है, जब तक उनका पेट नही भरता तब तक मादा मच्छर काटते रहता है और खून पीते रहता है। नर मादा की मिलन उड़ते समय हवा में होती है। मादा मच्छर के कारण होता है। मादा मच्छर 6 सप्ताह तक जीवित रहता है। मादा मच्छर के काटने के दौरान ही परजीवी को मानव शरीर में छोड़ता है और एक सामान्य मनुष्य को संक्रमित करता है बहुत से मच्छर वायरस को फैलता है जैसे डेंगू वायरस ,जीका वायरस ,चिकनगुनिया वायरस है जबकि मलेरिया की बीमारी एक प्रकार की परजीवी जिसे प्लास्मोडियम कहते है एवम फाइलेरिया के बीमारी भी एक परजीवी से होता है जिसे आउचेरिया ब्रांकाफ्ताई एवम ब्रूसिया मलाई के कारण होती है। मच्छर जनित रोगों से बचाव के उपाय में 2 तरीके है पहला मच्छर के अंडे जब लार्वा के अवस्था में होते है उसी समय स्थिर पानी में लार्विसिडल पदार्थ डाले जिसमे मुख्यत मिट्टी तेल या जला हुआ मोबाइल ऑयल या फिर कोई लार्वा मारने की दवाई की छिड़काव ,इसी अवस्था में पोखरों आदि में एक प्रकार की मछली होती है जिसे गंबूजिया मछली कहते है। पानी में डालने से मछली मच्छर के लार्वा को खा लेते है परिणाम जमे हुए पानी या स्थिर पानी की लार्वा मछली द्वारा खाकर नष्ट कर दी जाती है।
मच्छर से कैसे बचे
डेंगू के मच्छर सूर्योदय के 2 घंटे एवम सूर्यास्त के ठीक पहले का समय उत्तम होता है जबकि मलेरिया के मच्छर देर रात को काटते है वैसे ही फाइलेरिया के मच्छर भी रात को काटते है इनसे बचने के लिए शाम होते ही कपड़े से शरीर को ढके , ज्यादा रंगीन कपड़े शाम को न पहने ,ज्यादा ऑइली भोजन भी न ग्रहण करे ,रात को सोते समय मच्छर दानी का प्रयोग करे , मच्छरदानी भी मेडिकेटेड होना चाहिए , मच्छर को भगाने एवम मारने के कई पदार्थ क्वायल,लिक्विड, अगरबत्तियां आज बाजार में उपलब्ध है।इसका प्रयोग करके हम मच्छर के काटने से बच सकते हैं। ग्रामीण अंचलों में शाम के समय नीम के पत्ती की धुएं करना , नीम के खली की धुएं करने से भी मच्छर भगाते हैं। शहरों के साथ आजकल ग्रामीण अंचलों में भी पक्की नालियां बनाई जा रही है लेकिन नियमित सफाई नही होने से मच्छरों के पनपने के लिए अनुकूल स्थान मिल जाते है। इस कारण समुदाय की जागरूकता एवम सहभागिता आवश्यक है। पंचायत स्तर पर भी मच्छरों के लार्वा को नष्ट करने के लिए एवम मच्छरों की उत्पत्ति के रोकथाम के लिए अभियान नियमित रूप से चलते रहना चाहिए।